गैर होगी सोचा न था.!!
घायल किया तेरी कुछ दिन की दोस्ती ने.!
न संभल पाया फिर तेरी ज़ुस्तज़ू आरज़ू से.!!कभी रातों के हमनशीं थे तेरे ख्यालों में.!
आज गैर संग सेज सजाई तेरे अरमानों ने.!!मेहंदी किन्हीं ख्वाहिशों का क़त्ल करती.!
कभी गैर भी होगी सोचा न था हसरतों ने.!!एक दिल है और सौ अफ़साने तड़पाते.!
उम्र तबाह कर दी तेरी चाहत-ख्वाहिश ने.!!कभी तो होगी अपनी बस यही सहारा था.!
गैर बाँहों में देख दम तोड़ दिया उम्मीदों ने.!!
Posted on February 23, 2018, in Ghazals Zone. Bookmark the permalink. 3 Comments.
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शुक्रिया दीप्ति जी
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