Category Archives: Nagama-e-Dil Shayari

क्यों.!!


चुपके से आती है,
रात जब ढलने को होती.!
चैन चुरा ले जाती,
आँख जब भूलने को होती.!!

क्यों करती हो ऐसा,
किस जन्म का बदला लेती.!
नहीं है इश्क़ गर तो,
क्यों चेहरा दिखा तरसाती.!!

इक बार इक़रार कर,
बात होंठों पे क्यों न लाती.!
ज़िन्दगी एक बार मिले,
क्यों ये बात है भूल जाती.!!

सूना-सूना लगता जहाँ तेरे बिना.!!


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सूना-सूना लगता जहाँ तेरे बिना साजना .!
अब आ भी जा यूँ न तड़पा मुझे बालमा.!!

क्या खता की है ये तो बता,
खफा है क्यों कुछ तो सुना,
जान लेकर ही क्या मानेगा औ जालमा…

ख्यालों में एक तेरी तस्वीर,
नाम से नसीबों की लकीर,
अब मुझ को न ठुकरा यूँ अरि जानवां…

माँ…!!


जो शीश माँ के चरणों में झुकाते,
वही ज़माने का विश्वास पाते हैं.!

माँ के कदमों तले ज़न्नत का सार,
जीते जी यहीं स्वर्ग पा जाते हैं.!!

सुना है रब्ब होता पर देखा नहीं,
देखी बस माँ की मधुर छाया.!

पैदा किया दूध पिला बड़ा किया,
फिर भी बगावत कर जाते हैं.!!

जिस ने न किया माँ का आदर,
उसने न पाया कहीं भी प्यार.!

अपनी जननी को न मानने वाले,
सम्मान कहाँ कहीं पाते हैं.!!

बढ़ गईं थी धड़कने जो उन संग मिले थे…


प्यार में पहले दिन जो उन संग मिले थे,
बढ़ गईं थी धड़कने थम गया समां था.!

ज़ुबाँ से कम हुई नज़रों ने ज्यादा कही,
जैसे कई जन्मों की पहचान पुरानी थी.!!
प्यार में पहले दिन…

आवारा जुल्फें गालों को छेड़ रही थी,
शर्म- ओ- हया से नज़रें झुक उठ रही.!

कैसे गुज़रा वक़्त ज़रा भी न खबर हुई,
वादे- कसमें खाई वही बात पुरानी-सी.!!
प्यार में पहले दिन…

सागर“यूँ तो जीवन भूली-बिसरी यादें,
मगर कुछ ऐसी भी चाह न भूली जावें.!
कुछ उन से ऐसा अपना भी मिलना था,
वफ़ा- वादों की यही अपनी कहानी थी.!!
प्यार में पहले दिन…

Purpose…दिल से


अगर तू अब तक कुंवारी है,
इक बार हाँ कर के तो देखती…

न बांग्ला चाहिए न मोटर कार,
न दान-दहेज़ न माल…!

ईश्वर का दिया सब है पास,
एक तेरे जैसी साथी नहीं…
जो जीवन खवैया बने और,
बने मेरा अभिमान…!

छोड़ देता सब तुझ पर,
क्या हकीकत क्या फ़साना… 
तेरी नज़रों के गर क़ाबिल,
छोड़ा दे यारा शर्माना…!

इससे पहले गैर का बनु,
आ दामन थाम ले मेरा…
जैसी भी जिस हाल भी,
मंजूर ईश्वर का नज़राना…!

रात के मध्य पहर में…


प्रस्तुत कविता आज प्रात:उठते ही लिखी थी…

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रात के मध्य पहर में,
जब सब सो जाते,
तू चली आती है…
रात के मध्य पहर में…

चाँद छुप जाता,
सितारे टिमटिमा उठते,
होले से कानों में फुसफुसा,
नींद चुरा जाती है…
रात के मध्य पहर में…

स्वपन दर्शन करा,
नई उमंग सर्जित करती,
प्रेम”सागर“में विश्वास दिला,
दिल को सेहला जाती है…
रात के मध्य पहर में…

क्या मेरा क्या तेरा यहाँ,
सबका साँझा सबका बिसरा,
मोह-माया त्याग करा,
दिव्य-ज्ञान समझा जाती है…
रात के मध्य पहर में…

दिल परदेसी हो गया…!!(नज़्म)


दिल परदेसी हो गया (नज़्म)

 

अँखियाँ क्या लड़ी दिल परदेसी हो गया.!
देखते देखते  ही  कोई नैनों में बस गया.!! 
दिल परदेसी हो गया…

दिल तो दिल है,
किसका है इखत्यार,
मेहँदी उसके हाथों लगी,
असर दिल पे हो गया,
दिल परदेसी हो गया…

बड़ा बेअसर था,
जब तन्हा था दिल,
मुहब्बत में बह गया,
गुल-ए-गुलशन हो गया,
दिल परदेसी हो गया…

हाल इसका न सुनु,
तो धड़कता जोर से,
सब कहते हैं तेरा ,
दिल बगावती हो गया,
दिल परदेसी हो गया…

याद उस को ज़रूर आती होगी…!!


सोचता हूँ याद उस को ज़रूर आती होगी.!
आईने में खुद की हालत जब देखती होगी .!! 
याद उस को ज़रूर आती होगी…

तन्हाई में तन्हा हो कर तकिये में सर छुपा,
रातों को रोती होगी..!
याद उस को ज़रूर आती होगी…

चाहे वो ज़ुबाँ से न करे इक़रार बिस्तर पर,
करवटें बदलती होगी..!
याद उस को ज़रूर आती होगी…

सामने न हों सही मगर तस्वीर तो है पास,
देख मुस्काती होगी..! 
याद उस को ज़रूर आती होगी…

कागज़ पर लिख-लिख इक नाम दिल में,
पुकारती तो होगी ..!
याद उस को ज़रूर आती होगी…

कुछ मजबूरियां तो कुछ मगरूरियत भी है,
बेशक तड़पती होगी..! 
याद उस को ज़रूर आती होगी…

सागर” की कमी हर मौसम मैं बारिश को,
भी होती तो होगी ..!
याद उस को ज़रूर आती होगी…

Young woman asleep in bed

Young woman asleep in bed

रात भर जागे हैं.//


रात भर जागे हैं,
ठाठ से जनाब सोये पड़े हैं /
जिस हुस्न पे नाज़,
उसे सरे बाजार किये लेटे हैं //

आवारा हो चली हैं,
वो काली घटाओं सी जुल्फें /
बरसेंगी किस आँगन,
खामोश मगर सवाल समेटे हैं //

सुर्ख लाल लबों पर,
इक मेरा ही नाम रहता उसके /
दुनियां सामने बेशक,
हर पल ना नुकर कर लेते हैं //

जब जागेगी लड़ेगी,
कुछ फितरत है उसकी ऐसी /
वक़्त कैसे कटता,
जाने यारो जब सामने होते हैं //

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❤️❤️❤️दिल❤️❤️❤️परदेसी हो गया…


जब से हुई है मुहब्बत,
ये दिल परदेसी हो गया.!
भटकता फिरता यहाँ-वहां,
घर से विदेशी हो गया.!!
ये दिल परदेसी हो गया…

संभाले रखा था अब तक,
जब तक नज़र न मिली थी,
सांसें एक क्या हुई,
ये दिल परदेसी हो गया…

तन्हाई चाहता अब ये दिल,
जो उनका तसव्वुर कर सके,
अखियां तस्वीर क्या बसी,
ये दिल परदेसी हो गया…

ज़िन्दगी क्या जाना “सागर“,
जब से उन संग मुहब्बत हुई,
अब अपना कुछ न रहा,
ये दिल परदेसी हो गया…

goood morning

Jab se huyi hai muhabbat ,
Ye Dil pardesi ho gaya .!
Bhatakta phirta yahan -wahan ,
Ghar se videshi ho gaya .!!
Ye Dil pardesi ho gaya …

Sambhale rakha tha ab tak ,
Jab tak nazar na mili थी,
Sansein ek क्या huyi ,
Ye Dil pardesi ho gaya ...

Tanhai chahta Ab ye Dil ,
Jo unka tasavvur kar sake ,
Akhiyan tasweer kya basi ,
Ye Dil pardesi ho gaya …

Zindagi kya jaana “Sagar “,
Jab se un sang muhabbat huyi ,
Ab apna kuch na raha ,
Ye Dil pardesi ho gaya …

ज़रा सोच…!!


तुझ से मुहब्बत न होती तो ज़रा सोच,
तेरे पीछे-पीछे घर तक क्यों मैं आता,
तेरी मम्मी के जुटे-चप्पल क्यों खाता,
वो जो काला सांड-सा कुत्ता पाल रखा है,
तेरे डैडी ने पीछे छोड़ भाग कटवाया है…

ज़रा सोच…

साला बनाने की चाह कई जतन किये,
तेरे भाई को उसकी गर्ल-फ्रेंड से मिलवाया,
और गर्ल-फ्रेंड के पापा ने भी पिट लिए हैं,
बड़ा मंहगा पड़ा है सौदा तेरी उल्फत का,
जिसने चाहा धो-धो थपकी से धुलाया है…

ज़रा सोच…

कहीं दाल न गली तेरी बहन से जा मिले,
पास बिठाया और दिल के टुकड़े खोल दिए,
हाल-ए-दिल सारा जान वो मंद-मंद मुस्काई,
बोली हमें देखो हमरी बहना से बेहतर मलाई,
अरे बेवकूफ तूने हमसे क्यों न आँख लड़ाई…

ज़रा सोच…

तरस खा मुझ पर कर मुहब्बत तू मुझ से,
ज़िन्दगी न कटे तेरे बगैर कसम है दिल से,
और का न हो जाऊं मुझसे पहले आ मिल,
माँ ने दिया है अल्टीमेटम खफा है मुझ से,
देख लेना वो एक दिन दूर करेगी तुझ से…

ज़रा सोच…

55

सौतन/Souten…


ईर्ष्या मानव जीवन की एक नैसर्गिक आदत है…
व्यक्ति चाहे कितना भी दयालु या सभ्य क्यों न हो?
अपने प्रियतम को किसी और की तरफ आकर्षित
होते नहीं देख सकता…
इसी को ध्यान में रख एक प्रेयसी की अपने प्रियतम
पर दी गयी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का प्रयास
प्रस्तुत रचना में किया है

++++++++++++++++++++++++++++++

32 24 26 क्या खूब फिगर मैंने पाई है.!
क्या है मोई सौतन में जो इतना भायी है.!!
क्या है मोई…
चंदा-सी सूरत शराबी आँखन मैंने पाई है.!
देख मुझे चन्दर लोक की भी शरमाई है.!!
क्या है मोई…
मर्द ज़ात होती रसिया दिल खोट समाई है.!.
एक संग मन भरा दूजी से आँख लड़ाई है.!!
क्या है मोई…
काली-कलूटी भैंस पे क्यों लार टपकाई है.!
हूर छोड़ लँगूरनी संग क्यों नज़र मिलाई है.!!
क्या है मोई…
याद जब कहता था तू मक्खन सी मलाई है.!
दुनियां में तुझसे सुन्दर होर न कोई लुगाई है.!!
क्या है मोई…

priytam.jpg

32 24 26 kya  khub figure  maine pai hai.!
Kya hai moyi sotan mein jo itna bhai hai.!!
Kya hai moyi…
Chanda si surat sharaabi aankhan maine pai hai.!
Dekh mujhe chandar lok ki apsra bhi shrmai hai.!!
Kya hai moyi…
Mard jaat hoti rasiya dil ma khot samai hai.!
Ek sang man bharaa duji se aankh ldaai hai.!!
Kya hai moyi…
Kaali kalooti bhains pr  kyun  laar tapkaai hai.!
Hoor chod langurni sang kyun nazar milai hai.!!
Kya hai moyi…
Yaad  jab  kehta  tha  tu  makakhan  si  malaai hai.!
Duniyan mein tujhse sundar hor na koyi lugai hai.!!
Kya hai moyi…

तुम जीवन का सार हो..!!(Dedicated)


श्रृंगार और प्रेम रस से समायोजित सजनी के लिए लिखी गई कविता प्रेषित है:

तुम जीवन का सार ही

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चन्दा से भी सुन्दर,
तुम्हारी सूरत है.!
ईशवर की बनाई,
बेमिसाल मूरत है.!!

तुम्ही हो जीवन,
तुमसे रफ़्तार है.!
सजनी तुम्हीं संग,
जीवन में शृंगार है.!!

मांग का ये सिन्दूर,
होने का एहसास है.!
आँखों का कजरा,
सपनों की बरसात है.!!

तुम्हारी सांसों से,
ज़िंदा सांसें हैं.!
तुम हो आँगन तो,
हर और बहार है.!!

बगिया के ये फूल,
रोशन तुम्हीं से हैं.!
कल-आज-कल की,
पीढ़ियों के निशाँ हैं.!!

करती शिकायत हरदम,
मुझ पे नहीं लिखते.!
पगली जानती नहीं,
शब्दों में विराजमान है.!!

 

 

“Tum Jiwan Ka Saar Ho”

 

Chanda se bhi sundar,

Tumhari surat hai.!

Ishwar ki banai,

Bemisaal murat hai.!!

Tumhin ho jiwan,

Tumse raftaar hai.!

Sajni tunhin sang,

Jiwan mein shrangar hai.!!

Maang ka ye sinur,

Hone ka ehsaas hai.!

Aankhon ka kajra,

Sapnon ki barsat hai.!!

Tumhari sanso se,

Zinda sansein hain.!

Tum ho aangan to,

Har aur bahaar hai.!!

Bagiya ke ye phool,

Roshan tumhin se hain.!

Kal-aaj-kal ki,

Pidhiyon ke nishan hain.!!

Krti shiqyat hardam,

Mujh pe nahin likhte.!

Pagali  jaanti nahin,

Shabdon mein virajman hai.!!

❤ए दोस्त लौट कर आजा❤


ए दोस्त लौट कर आजा….❤❤ Instantly (Online) लिखी गई नज़्म है …
कवि/शायर मन कभी-कभी बड़ा उदास होता है…
दुनियां उसे कभी नहीं समझ पाती…

ए दोस्त तू लौट कर आजा,
ज़िन्दगी तेरे बिन अधूरी है.!
मिलती नहीं रोशनी किरण,
बिन तेरे ज़िन्दगी अँधेरी है.!!
ए दोस्त लौट कर आजा…

मैंने माँगा ना रब्ब से बहुत,
तेरी मुहब्बत के सिवा कुछ.!
इबादत को ज़िन्दगी समझा,
तेरे बिन देखा ना और कुछ.!!
ए दोस्त लौट कर आजा…

ये शहर गलियां किस काम,
याद कराती बस तेरा नाम.!
ही फूल वही शाखें मगर,
सासें लेती हैं बस तेरा नाम.!!
ए दोस्त लौट कर आजा…

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हाँ तुम बदल गयी हो…(On Demand)


Tum mujhe bhulna chaho to beshaq bhula do.!

Maine har janm yaad rakhne ki kasam khai hai.!!

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पहले जैसी नहीं रही तुम,
हाँ तुम बदल गयी हो…

याद है जब पहली बार मिली थी,
श्रृंगार रस में सजी-धजी,
प्रेम रस से बातें करती,
नयनों में सपनें लिए,
उमंगों को पंख लगाती-सी…
हाँ तुम बदल गयी हो…

समय का पहिया है घूमता है,
बस यादों का साया अब,
कुछ खट्टी कुछ मिठ्ठी,
उम्र का आखिर पड़ाव,
बूढी हो चली हैं उम्मीदें…
हाँ तुम बदल गयी हो…

जैसी भी हो जीवन की डोर हो,
वीरानियों में सहेली तुम,
पंख लगा उड़ेंगे पंछी,
तनहा रह जाएंगे हम-तुम,
इंतज़ार-इंतज़ार-इंतज़ार करते…
हाँ तुम बदल गयी हो…

Please Think It…


 

ये कैसी बेबसी है “सागर“,
बहुत कुछ चाहा पर कुछ नहीं कर सकता.!
कुछ दिन की बागवानी दिला,
दिखाऊं दुनियां को क्या-क्या हूँ कर सकता.!!

अर्ज है:-

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वो कहते हैं खुद को वतन के प्रहरी,
ज़रा सा वक़्त मिलता लूटने से गुरेज़ ना करते.!
ये कैसी विडम्बना है”सागर“फिर भी,
इन्हें ही बार-बार चुन अपनी संसद हैं भेजते.!!

पढ़ते-पढ़ते यारो बचपन गुज़र गया,
ईमान की खाओ तो ज़न्नत नसीब होगी ज़रूर.!
इसी चाहत ज़िन्दगी आम की गुज़रती,
इन कोहिनूरों के आगे ज़न्नत भी हुई है मजबूर.!!

मजहब-जाति से न बांटों भाइयों को,
कुर्सी खातिर फ़िज़ाओं में नफरत न फैलाओ.!
सब माफिक दुनियां से कूच करोगे,
आने वाली नस्लों को अमन पैगाम दे जाओ.!!

ऐसा हो कैसा हो सपनों का भारत,
सरहद पर लड़ने वाले वीरों से ज़रा सीखो.!
गर ज़रा भी शर्म बची है तो उठो,
बगिया मेहनत और अपने खून से सींचो.!!

!!..कभी खुदा ना करे..!!


तू मुझे चाहे ना चाहे,
कोई बात नहीं.!
पर और को चाहे ऐसा,
कभी खुदा ना करे.!!!!

मैने दिन-रात गुाज़रें हैं,
इंतज़ार में तेरे.!
अपनी पलकों में संजोए हैं,
सपने संग तेरे.!!
तेरी नज़रों में बसे गैर,
कभी खुदा ना करे.!!!!

बिन तेरे जीने का तस्स्वुर,
भला हो कैसे.!
गैर मूरत दिल में सजाऊँ,
भला मैं कैसे.!!
तेरे बिन किसी और की सौचूँ,
कभी खुदा ना करे.!!!!

तुझे भूल पाऊँ कोई,
दवा तो बता.!
अपने बीमार के बचाने की,
दावा तो बता.!!
तेरे बिन ज़िंदगी हो बाकी मेरी,
कभी खुदा ना करे.!!!!

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Tu mujhe chaahe na chaahe,
Koyi bat nahin.!
Par aur ko chaahe eaisa,
Kabhi Khuda na kare.!!!!

Maine din-raat guazarein hain,
Intzaar mein tere.!
Apni palkon mein sanjoye hain,
Sapne sang tere.!!
Teri nazaron mein buse gair,
Kabhi Khuda na kare.!!!!

Bin tere jine ka tassvur,
Bhala ho kaise.!
Gair Murat dil mein sajaoon,
Bhala main kaise.!!
Tere bin kisi aur ki souchun,
Kabhi Khuda na kare.!!!!

Tujhe bhool paaoon koyi,
Dawa to bata.!
Apne bimaar ke bachane ki,
Dawa to bata.!!
Tere bin zindgi ho baki meri,
Kabhi Khuda na kare.!!!!

05/06/2014

8:43 PM.

 

“सागर”अब सम्भलना होगा…


हर हाल में जीना होगा,
किसी के प्यार में जीना होगा,
किसी को न हो पर,
किसी को बड़ी ज़रूरत होगी,
किसी खातिर ही जीना होगा…

 

ज़िन्दगी उलझनों से भरी,
पेड़ पर पतंग-सी अड़ी,
किसी हाथ डोर,
कोई पेचा लड़ा रहा,
हर तज़ुर्बा लेना होगा,
किसी खातिर ही जीना होगा…

 

मुखोटे पर मुखोटे लगे,
प्यार में धोखे लगे,
जीने का मकसद मतलब,
गौरे तन दिल काले पड़े,
सागर“अब सम्भलना होगा,
किसी खातिर ही जीना होगा…

==========+++++==========

टहलते-टहलते ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…


रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
कुछ मासूम से कुछ भयानक,
फ़लसफ़ों से आँखें चार हो गयी…

कहीं सिहर रही थी,
कहीं ठिकाना ढूंढ़ती,
शून्य निगाहों से,
भीड़ भरी बस्ती में,
अपना तलाश रही थी,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…

आँखों में सपने,
जीने की आरज़ू भी,
सूखे होंठों पर,
बेबसी की छाया थी,
भूखी पत्थराइ पेट में,
पानी की मधुशाला थी,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…

बहुत पाया फिर भी,
और की चाहा है,
नसीबों वाले हैं,
जिनके सर छाया है,
पेट भरा है”सागर“,
मगर मन में मोह-माया है,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…

============+++++============

कभी तो रुकना है'”सागर”…


कभी तो रुकना है,
जीवन से थकना है,
नयी राहों और,
चलना बस चलना है…

मौत शाश्वत है,
हर हाल आनी है,
फिर काहे चिंता,
अभी तो जवानी है…

ख्वाहिशों की चाहत में,
हर खवाहिश अधूरी,
जो खवाब पूरा न हो,
ख्वाहिश क्यों करनी है…

इंसान भी अजीब है,
दिन-रात चिंता करता,
जानता न साथ जाएगा,
फिर भी इच्छा जतानी है…

ज़िन्दगी जीने का मज़ा,
अमन-चैन-मुहब्बत है,
कुछ रह गया'”सागर“,
छोड़ ज़िन्दगी आनी-जानी है..

“सागर”इक राजा वो”सागर”की महरानी.!!


कभी मुस्कुराती,
कभी उदास हो जाती.!
बड़ी खूबसूरत,
हसीन हसीना है वो.!!

 

एक जहाँ उसका,
उसकी है सल्तनत.!
जो जी चाहे करे,
कोई ना करे बगावत.!!

 

कुछ उसके सपनें,
कुछ अरमान भी होंगें.!
कुछ पूरे हुवे,
कुछ अधूरे जरूर होंगें.!!

 

रब्ब से दुआ यही,
इस दिल बने वो रानी.!
सागर“इक राजा,
वो”सागर“की महरानी.!!

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दो पल की ख़ुशी खातिर…!!


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दो पल की ख़ुशी खातिर,
उसे ज़िंदा लाश ना बनाओ.!
उसकी मुहब्बत समझो,
उसको फ़रियाद न बनाओ.!!

किसी की वो बेटी-बहन,
कुछ उसके भी अरमान हैं.!
फंसा प्यार जाल में,
हवस निवाला ना बनाओ.!!

सपनों की दुनियां दिखा,
सेज पर उसको ना सजाओ.!
वफ़ा निभा सकते नहीं,
मुहब्बत को खेल ना बनाओ.!!

11

उसकी नादानी बख्शें,
उसे यूँ गुनहगार ना बनाओ..!
कौन क़ातिल नहीं यहाँ,
जहाँ में एक बेगुनाह बताओ.!!

सर के पल्लू की लाज,
जो इज़्ज़त से जीना चाहती है.!
उतार शर्म उस की,
उसे अब बेहया ना बनाओ.!!

न भूलें नारी से दुनियां,
दुनिआं का मान यूँ न घटाओ.!
सम्मान करें इज़्ज़त दें,
कोठे की रौनक ना बनाओ.!!.

Published on: 3 Jan 2018
Wednesday at 2:45 PM

Morning Special… तेरा नहीं मैं कभी परेशां न कर.!.!!


क्यों इक़रार नहीं तो ख्यालों में आते हो.!
खुद भी परेशां “सागर” को जगाते हो.!!

अर्ज़ है:-

अपने मासूम ख्यालों से,
परेशां न कर.!
तेरा  नहीं  मैं  कभी,
हैरान न कर.!!…

 

क्यों तेरा  इंतज़ार  रहता मुझे,
कोई और रास्ता दीखता नहीं,
इक अनजान को यूँ,
बेक़रार न कर…

 

रात ख्वाबों में  तूं आया था,
सुर्ख  जोड़े  को  पहने  हुवे,
ज़िन्दगी अपनी तूं,
वीरान न कर…

 

भूल जा “सागर” को भुलाने दे,
बिन अपने जीना सीख जाने दे,
मान जा देख दिल,
नादाँ न कर…

1

दस-दस बार मांगों अब माफ़ी…


शायद वो पाक मुहब्बत को,
कमजोरी मान बैठे.!
एक बार फिर से अपने पैरों,
कुल्हाड़ी मार बैठे.!!

 

अब की जो रूठे यूँ न मानेंगे,
ख्वामखा मौका दे बैठे.!
दस-दस बार मांगों अब माफ़ी,
क्यों तक़रार कर बैठे.!!

 

दिल का दर्द होता है बराबर,
तुम दर्द-ए-दिल ले बैठे.!
अपनी मन की बस करते हो,
यारों को भुला हो बैठे.!!

 

दीये कई सन्देश मगरूर रहे,
दिल”सागर“तोड़ बैठे.!
अब पछताए क्या होत जो खेत,
चिडया चुगाये बैठे.!!

 3

ज़रा ध्यान से…


वैसे हर किसी से तुम…तुम्हारा… कर बात करना,
कुछ लोगों को काफी तहज़ीब भरा लगता है…?

3

मज़ाक ही तो किया था,
नहीं चाहिए तेरी किस्स,
वैसे भी तू पान बहुत खाती है…

 

तेरे भी हैं कुछ सपने,
तेरे भी अरमान,
उनके होंठ अपने हैं,
तेरे लब उनके,
फिर कैसे तेरी आरज़ू,
कैसे तेरी ज़ुस्तज़ू,
अपनी तो वैसे भी ग्वालियर वाली है ना …

 

कभी पागल कहती,
कभी आवारा,
माना हम रूठ जाते,
रूठते तो मान भी जाते,
तेरी तरह नखरे पर,
नखरा भी न दिखाते
अब छोड़ भी वैसे भी,
परपोज़ तेरी सहेली ने क्या है…

 

फ़िरोज़ाबाद के अंगूर,
तुझे हों मुबारक,
आगरे का पेठा,
अपने घर ही मंगवा,
तेरी सोच गैर समझ भी,
गैर होने की बू आती,
क्यों”सागर“हो परेशान,
वैसे भी साथ बगल वाली है ना…

Nnightmare. !!


Your smile,
Bend the eyelids,
draw close,
I remember even today.!
Vibrating lips
Aromatic breaths,
Body’s heat,
How can I forget.!!

Your love,
Your consent,
Promises,
There is hope to live.!
This restlessness,
And Loneliness,
Your memories,
Now is a nightmare. !!

red1

तेरा मुस्कुराना,
पलकें झुकाये,
करीब आना,
आज भी याद है.!
कंपकाते होंठ,
महकती सांसें,
तन की गर्मी,
कैसे भुला सकता.!!

तेरा प्यार,
तेरा इक़रार,
कसमें वादे,
जीने का सहारा हैं.!
ये बेचैनी,
और तन्हाई,
तेरी यादें,
ख़राब ख्वाब है.!!

 

शुक्र कर मुबारक दे गई…


क्यों हल्ला मचा रखा है,

नहीं आती ना आये,
शायद उसकी अम्मी ने,
उसे कहीं फसा रखा है…

भाई जवान छोरी है,
ब्याहने की उम्र भी,
मां ही फिक्र्र करेगी,
तो ही सूली चढ़ा रखा है…

कल कह तो रही थी,
ना आना पीछे मेरे,
अब रिश्ता कोई नहीं,
मौहल्ला क्यों उठा रखा है…

शुक्र कर मुबारक दे गई,
हुस्न क़ातिल होता,
परवाने हैं यही कहते,
शम्मा ने तो जला रखा है…

जन्म-दिन”सागर“का,
उसका क्या रिश्ता,
वैसे भी मगरूर गैर भी,
क्यों दिल पर लगा रखा है…

Good Morning in Shayar’s Way…


आशक़ाँ-दी गुड मॉर्निंग… 

 

वो आये”सागर“,
इक मैसेज छोड़ा  और चुपके से खिसक गए.!
क्या यही वफ़ा,
मुहब्बत करने वाले लोग जाने कहाँ चले गए.!!

 

ऐसा भी क्या,
गुड मॉर्निंग न फ्लाइंग किस्स न आइस कांटेक्ट.!
कॉलेज से हैं,
पढ़े-लिखे है पीछे मैनर्स कितने अच्छे छोड़ गए.!!

 

खुदा ऐसा करे,
कभी”सागर“घर-आँगन की शान-ए-शौक़त बने.!
फिर देखेंगे वो,
दो-चार सर्टिफिकेट्स छोड़ कैसे मुंह मोड़ गए.!!

 

अपना क्या है,
पागल लिख या आवारा कह तेरे ही हैं “सागर“.!
मान ले कहना,
सर टकरा दीवार रोएगी जो दुनियां से चले गए.!!

yy

09:45 AM

करती है मेरे अरमानों की धुलाई.!!


ये तेरा रोज़-रोज़ का कॉलेज,
और कॉलेज की पढाई.!
रात जाग असाइनमेंट्स बनाना,
है मेरे इश्क़ में रुकाई.!!

लिखती अच्छा लिखावट अच्छी,
खूब लूटती है वाह-वाही.!
ग़ज़ल लिख या शेर मेरे नाम पर,
कब लिखेगी तू रुबाई.!!

मीठी-मीठी बातें बहुत करती है,
लोग माने तुझे मिठाई.!!
आशिक़ बड़े तेरे पर मेरे नाम तो,
होती है बस जग-हसाई.!!

दिल खोल हाल-ए-दिल बताया,
देखें कब होगी भरपाई.!
कब होंगे पूरे अब तक करती है
मेरे अरमानों की धुलाई.!!

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ज़िन्दगी की कमी है तू.!!


कई साल पहले एक नज़्म लिखी थी…
आज फिर कुछ यादें तजा हो आयी…
आज उसका अगला हिस्सा अर्ज़ है:-

 

मेरी ज़िन्दगी की कमी है तू,
जिसे चाह कर ना भुला सकूँ.!
जो हवा मुझे दर्द दे गई,
वो तेरे ग़मों को ले उड़े.!!

तेरे सामने है ज़िन्दगी पड़ी,
एक मैं नहीं तो क्या हुआ.!
जो प्यार अभी हुआ नहीं,
उस प्यार को क्यों याद करे.!!

एक वहम सिवा कुछ नहीं,
तेरा रकीब हूँ कोई दोस्त नहीं.!
तुझे कसम तेरे प्यार की,
तेरा हमसफ़र “सागर” नहीं.!!

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