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NOTE:-

फोटो का प्रयोग मात्र शेर/शायरी की रोचकता बढ़ाने हेतु किया है,
किसी की भावनाओं को ठेस पहुचना इसका उद्देश् नही है!
किंतु फिर भी यदि किसी को बुरा लगे तो वो प्रेषित फोटो के
बारे में हमें लिखे उसे हम डेलीट{हटा} कर देंगे और इस के
लिए हम आप से पूर्व में ही खेद व्यक्‍त करते हैं!

  1. 1 अब कितनों को दिल देगी वही जाने सब ,
    कितने टुकड़े संभाले फिरती यहाँ.!
    यक़ीं करने सिवा क्या हो दिल ले कहती,
    Dil se Shukriya SharmaJi.!!

    2,कुछ तो लिखने के लिए जगह छोड़ी होती.!
    कैसे हो यक़ीं दिल में भी जगह खली होती.!!

    इश्क़ भी कितना नादाँ होता”सागर”,
    न हो तब भी परेशान दिल न हो तब भी.!
    नादाँ कहते वो रात भर जगाने बाद,
    ख्वाब देखते वो बोलें रात सोने न दिया .!!

    4.तू सच में इतनी खूबसूरत है जितना Dp में दिखती है.!
    या यूँ ही आशिक़ों को बनाने के लिए Pic लगा लेती है.!! 

    5.इश्क़ वो क़र्ज़ है ज़ालिम जितना उतरा जाए.!
    कम्बखत ब्याज उतना ही बढ़ता जाए”सागर”.!!

    6.जब भी जाते दीदार करने हुस्न-ए-जाना गली,
    गली के कुत्ते भाग पीछे तेज़-तेज़ भोंकते हैं.!
    लठ्ठ दिखाते तो बोलें वकील इतना न जानते,
    अभिव्यक्ति की आज़ादी क्या तुम्हें ही है.!! 

    7.मुहब्बत भी रहेगी और अदावत भी कब इंकार.!
    इक बार करीब तो आ हो जायेगा तुझे भी प्यार.!! 

    8.लफ़्ज़ों का जादू ही दिखाना हकीकत न बताना .!
    दिल-ए-उलझन तो जस्स की तस्स पड़ी अब भी.!!
    9. हकीकत-हकीकत है कितने सीरत देखें.!
    रूप के पुजारी यहाँ रूप तराज़ू में देखें.!!

    10. उफ़ नहीं भूलता वो कढ़ाईदार साडी में लिपटा बदन,
    जैसे झील में खिलता कोई कमल.!
    जब-तब बंद करूँ पलकें तेरी वो तस्वीर नज़र आती,
    हो सके”सागर”उल्फत से संभल.!!

    वक़्त गर साथ हो”सागर”दूरियां नजदीकियां बन जाती.!
    मन चाही मंजिलें हासिल होती हसरतें अधूरी न रहती.!!

    बंद करते गर आँखें तो यूँ न सोचते फिर./
    दिल की धड़कनों में आवाज़ किसीकी है .//

    क्यों रुक-रुक कर तुम आती हो
    इक बार ही क्यों नहा मुंह दिखाती हो.!
    सुबह-सवेरे तड़पना अच्छा नहीं
    उल्फत है तो मान क्यों नहीं जाती हो.!!!

    न जाने तंज कसा है या फिर मुहब्बत का है इस में पैगाम .!
    हसीनों की हर बात होती साजिश “सागर” यक़ीन कम है .!!

    वो करता है आज भी उतनी ही मुहब्बत मान.!
    ये और बात तूने वफ़ा को परखना छोड़ दिया.!!

    कभी”सागर”गली आ दीदार करा हुस्न-ए-जलवों का जान-ए-जिग्गर.!
    तेरे घर के चक्कर काटने से क्या फायदा दीवारें हैं वहां ऊँची-ऊँची.!!

    अपने-अपने मुक़द्दर की बात,
    किसी को मनचाहा किसी को अनचाहा.!
    जो भी मिला कोई इसमें रज़ा,
    रब्ब कभी”सागर”निराराश नहीं करता.!!

    अज़ी रोक कर क्या मरना था ज़माना ख़राब है.!
    वो ज़माना न रहा”सागर”अबतो मौसम बेहाल है.!!

    तुझे शौक है हीर बनने का,
    काश कुछ बरस पहले मिलती.!
    रांझने से कम न थी वफ़ाएं,
    बस एक बार ज़रा तन्हा मिलती.!!

    एक सहारे ही न रहा कीजिये,
    ज़िन्दगी और भी है समझा कीजिये.!
    मुस्कुराती बहारें कहाँ मिलेंगी
    हर मौसम में बस खुश रहा कीजिये.!!

    पाक वफ़ा का दावा करने वालों को देखा गैरों संग बातें करते.!
    मुहब्बत का दावा कहीं करते हैं और कहीं सब्ज-बाग़ दिखाते.!!

    सपने वही अधूरे रहते जो ख्वाहिशों संग देखे.!
    इक पूरी हो दूजी की फरमाइश रहती”सागर”.!!

    तू मुझे भुला सके ये न हो पायेगा कभी.!
    मैं तुझे भुला सकूँ तू न होने देगी कभी.!!

    सोच इंसान को कहाँ से कहाँ ले जाती”सागर”./
    किसीको अर्श किसीको फर्श दिखाती”सागर”.//

    हुस्न की यही आदत इश्क़ सरे बाज़ार रुस्वा करना./
    क़त्ल भी करना और फिर इल्जाम भी खुद न लेना.//

    इतना खूबसूरत लिखते हो पर जगह ज़रा औरों के लिए न छोड़ते
    अब इक़रार करें तो करें कैसे जगह जवाब देने के लिए न छोड़ते

    इस दिल को न सुनने की आदत न थी,
    और तुम हो के न कर बैठे./
    यूँ भी “सागर” हाथ बढ़ाता न बार-बार,
    क्यों यारा खफा कर बैठे.//

    तेरी बेवफा आँखें वफ़ा करने को क्यों कहती हैं./
    तोड़ वादा “सागर” फिर जीने को क्यों कहती हैं.//

    न परेशाँ हो इस क़द्दर यूँ ज़रा दिल में झांक तो ले./
    देख सीने में तस्वीर”सागर”से तेरी सांसें महकती हैं .//

    ये सुबह-सवेरे क्यों राधा-मीरा का ज़िक़्क़र कर बैठे,
    वो ज़माना गया “सागर” अब कोई कृष्ण-सा न रहा.!
    मुहब्बत अब खेल बन बैठी है तिज़ारत का मेल सब,
    वाकिफ न कोई उल्फत से खोने का रिवाज़ न रहा.!!

    गर सितारों से दिल लगाएगा तो अंजाम ये ही होना था./
    काश “सागर” में अक्स की खोजने की कोशिश करता.//

    जो न समझें शायरी को वो भी आजकल बनने चले हैं शायर./
    कुछ पूछते”सागर”नाम क्यों लिखते क्या बताएं अब उनको.//

    इक सेल्फी जो अपने साथ भी होती तो बात बन जाती./
    तेरे हुस्न का संग पा”सागर”की तस्वीर भी निखर जाती.//

    खुद से ही जो हार जाता हूँ,
    खुदा कसम तुझे याद कर जाता हूँ
    इस क़द्दर बसा ज़िन्दगी में,
    तेरे बिन कहीं का नहीं रह जाता हूँ

    आईने खुद पर यूँ मगरूर न हो माना हुस्न का दीदार रोज़ करता
    अपना मुक़द्दर भी तो देख छू कर कोई एहसास नहीं कर सकता

    बंद करते गर आँखें तो यूँ न सोचते फिर.!
    दिल की धड़कनों में आवाज़ किसीकी है.!!

    चल आज अपनी यादों से तेरा तस्सव्वुर मिटा देता हूँ
    कभी की थी तेरी आरज़ू सारी ख्वाहिशें मिटा देता हूँ

    सवालों में ही जवाब छुपा होता है यारा
    और बात न समझने वाले न समझ जाते

    तूने की न सच्ची वफ़ाएं यारा वरना थे यहाँ बड़े चाहने वाले
    एक बार आजमा कर तो देखती थे बहुत तुझ पर मरे वाले

    तुझ से उम्मीद न थी यूँ बदनाम सर-ए-बाज़ार करेगी
    अब सोचता फैसला अच्छा था तुझ से मुंह मोड़ने का

    हुस्न जब लाजवाब होता तभी इतराता,
    सीरत की बात करता और बलखाताा./
    अज़ी “सागर” भी खूब समझे नखराने,
    इश्क़ को सर-ए-बाज़ार क्यों तड़पाता.//

    हिज़्र की रात उसकी और लम्बी हो जाए./
    सेज़ सजाने से पहले बड़ा तड़पाया उसने.//

    1.क्या करूँ उस चाँद का जो अपना न हो सके./
    सितारों माफ़िक़ दिल तुड़वाने की आदत नहीं.//

    एतराज़ नहीं तेरी खुली किताब होने का मगर डर लगता
    उस ज़माने का क्या करें”सागर”अंदर कुछ बहार कुछ है

    चाहत नहीं किसी माथे का ताज बनूं,
    रहूं शहंशा या महताब बनूँ।!
    दुआ मालिक से फ़क़त इतनी”सागर”,
    जैसा भी रहूं बस इंसान रहूं।!!

    तुझ से उम्मीद न थी यूँ बदनाम सर-ए-बाज़ार करेगी।!
    अब सोचता फैसला अच्छा था तुझसे मुंह मोड़ने का।!!

    तू कभी चाहे मुझे दिल की ख्वाहिश है यही
    तुझे खुदा समझ अपना तेरी इबादत की है

    इक बार इक़रार कर के तो देखते,
    ख़यालात मेरे बारे में बदल जाते.!
    तुम भी हो जाते बेकरर मेरी तरह,
    ज़िन्दगी अपनी गुलज़ार कर जाते.!!

    मुहब्बत में यूँ बदज़ुबाँ हुआ नहीं करते,
    दीवानों का हाल-ए-दिल समझा करते.!
    बामुश्किल से मिलता ये हुस्न-ए-शबाब,
    नादान समझ प्यार से समझाया करते.!!
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