Lamhein
गर परवाह थोड़ी सी भी की होती
साहिल तुझे मिल गया होता…
किश्ती मेरी भी भँवर में ना घिरती
मुझे भी किनारा मिल गया होता…
लोमड़ी को अंगूर न मिले तो खट्टे हैं,
जिसने खाया अंगूर उनसे पूछ कितने मीठे हैं…
नहीं पसंद तेरा किसी से मिलना बातें करना या फॉलो करना,
अब तू ही फैसला कर इतनी बंदिशों में रह मेरा प्यार क़बूल है…
किसी की चाहत का
जब बनाओगे मजाक,
सब्र जवाब दे जायेगा
फिर मिले कैसे जवाब…
ज़िन्दगी तो बेवफा है
फिर वफ़ा की उम्मीद कैसी.
एक न एक दिन जाना
फिर रखें इतनी चाहत कैसी…
अपनी दुआओं में उतना ही याद रखना,
न मिलें तो भूलना मुश्किल न हो “सागर”…
इक मुहब्बत सिवा और भी कई काम कई ख्वाहिशें हैं,
कीमत नलगा अपनी हस्ती या हंसी की किसी खातिर…
ख्वाबों में तो रोज़ रोज़ तंग करते
कभी रूबरू हो भी मिला करो…
देखो प्यार करते तो सीधा बताओ
न तो जान देने से न रोका करो…
अपनी पलकों के आईने में बिठा ले
माथे की बिंदिया में सज़ा ले मुझको…
लब से लेते मेरा नाम शरमाया न कर
साजन हूँ बता सखियों से बचा मुझको…
मुहब्बत भी कितनी अजीब होती “सागर”,
किसी को पीर किसी को फ़कीर बना देती…
चाहा तुझे टूट कर
अब नफरत भी देख…
मेरी ना सही मगर
और की न हो सकेगी…
कौन चाहता अपनी मुहब्बत रुस्वा करना,
मगर जब बेवफाई मिले करना ही पढ़ता…
ना कर इंतज़ार उस बेवफा का जिसने,
मुहब्बत तुझसे की सेज़ गैर संग सजाई…
इन टेडी मेढ़ी राहों पर हो कर गुज़रती ज़िन्दगी,
राह आसाँ हो तो ज़िन्दगी में लुत्फ़ ही क्या बचा…
ए चाँद ज़रा सम्भल जा
मेरी छत रोज़ न आया कर,
दिन तो तड़पते ही हम
रातों को यूँ न जगाया कर…
जब जब कहा उससे
आ ज़रा मिल और चेहरा तो दिखा जा अपना…
बहाने पे बहाने किये
एहसास उसे भी नज़रें हाल ए दिल बयाँ करती…
मेरी शायरी हो मेरे ख्वाबों
की मलिका हो,
ए हुस्न खुदा की कसम
बड़ी लाजवाब हो…
गर मुहब्बत तो साफ साफ इजहार करो,
वक़्त गुज़रे बाद पछताने से क्या हासिल…
ए सुबह रोज़ रोज़ यूँ
मुस्कुरा मुझे सबसे मिलाना,
शुक्रिया शुक्रिया मुझपे
एहसान तेरा बरसों पुराना…
कुछ एहसानफरोश यहाँ ऐसे भी
वक़्त ज़रूरत याद करते…
जो मना करो वही काम करते हैं
फंस जाएं तो भागे फिरते…
दुआओं में शामिल रखना
जाने कब मुलकात हो जाये…
तुझे भी मिल कर यारों से
कहीं भूले से न प्यार हो जाये…
मुहब्बत गर हमसे
हिजाब में चेहरा न छुपाया करो…
हमसे काहे यूँ पर्दा
देखो अब ऐसे न तड़पाया करो…
जब किसी से मुंह फेरा
मुड के न फिर देखा है…
बेवफा नहीं है ज़रा भी
बस बेवफा न झेला है…
देखा तेरे हुस्न का जलवा
दिल दीवाना हो गया…
ए शम्माँ अब यूँ ना इतरा
दिल परवाना हो गया…
क्या खूब है तेरे लबों की लाली,
थोड़ा चुरा लूँ तो नाराज़ न होना…
इसी बहाने तुझे करीब रख लूंगा,
मेरे मेहबूब मगर नाराज़ न होना…
माना तेरा तलबगार हूँ दीवाना हूँ,
आँखों में बसा लूँ नाराज़ न होना..
न कर इश्क़ तुझ पर ज़ोर नहीं है,
जं देदूं गर दर तेरे नाराज़ न होना…
उसकी बातों में क्या आना
जिसे करके वादा न निभाना
खानी मुहब्बत भरी कसमें
मगर दिल को दुःख पहुँचाना
क्यों कपड़ों की तरह वो बदलते हैं दिल
आज लोग मुहब्बत को तमाशा समझते
जो जिसे पसंद नहीं वो काम करती हो
तुम तो हर दूजे शक़्श से प्यार करती हो
करीब आओ तो डांटती
दूर जाओ तो तड़पती…
तुम ही बताओ क्या करें
प्यार तुमसे कैसे करें…
किश्तियाँ उन की ही मझधार पार करती,
जिनके इरादे तूफानों से ज्यादा बुलंद होते…
ज़िन्दगी हंस के गुज़र जाये तो अच्छा,
कौन जाने कब आखिर पल हो जाए…
मेरी ज़िन्दगी की तू ही वफ़ा
तू ही इक मुहब्बत,
मैंने हर पल तुझे चाहा मगर
कभी जताया नहीं…
इश्क़ क़द्दर चढ़ा तेरे इश्क़ का जनून,
चाय की प्याली में भी नज़र आती है…
इतने फूल बाँटे इन छोरियों को
फूल कर कुप्पा हो गई…
शादी से पहले ही सब की सब
जैसे गोल गप्पा हो गई…
Posted on January 30, 2022, in Shayari Khumar -e- Ishq. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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