Lamhein
बेशुमार नहीं इस दिल के रहनुमा,
इक तू ही जिसे शिद्द्त से चाहा है..
राह ए ज़िन्दगी यूँ ही
तन्हा न कट पाएंगी,
भिगो लोगे आँखें जो
साथ हमें न पाओगे…
क्या खूब है जान ए बहार
तेरी ये कजरारी आँखें…
देखी अपनी तस्वीर इनमें
आइना हैं ये तेरी आँखें…
कितनी कमबख्त हैं सबकी सब
रात नौं बजते ही ऑफ लाइन हो भाग जाती…
अरे पापा से इतना डरती हो गर
दिन भर मैसेज कर प्यार की पींगें क्यूँ बढ़ाती…
जुत्ती लुधियाने दी चुन्नी फगवाड़े दी,
दिल लै गई कड कुड़ी पटियाले दी…
तुस्सी इन्ज न वोल्या करो
जे तवाडा इश्क़ सच्चा
राति बुआ खुल्ला रख्या करो…
ये वादीय ए हुस्न ज़रा
संभाल रखिये
ज़माना खराब है…
दीवाना है शहर यहाँ हर
शोहदा समझ
दिल से बीमार है…
आंधी की तरह आती
तूफान जैसे उड़ जाती…
नशीली आँखों वालिये
क्यूँ इतना तड़पती हो…
खफा होने की भी इक हद होती
ज़िद्द होती सज़ा होती
अब मान भी जाओ छोड़ो ये सब
जब होती करीब
सांसों की महक दिल से टकराती…
नज़ारे खिल उठते
जैसे तब सच्चे प्यार का एहसास…
इश्क़ ने कितनों को आबाद किया
कहीं दीप जले कहीं अँधेरा…
टूट कर गर बिखरना ही था”सागर”
तो मुहब्बत की आरज़ू क्यूँ…
शिक़वा न शिकायत कोई तुझसे ज़िन्दगी,
जो भी दिया है बहुत खूब दिल खोल दिया…
तेरी तस्वीर मेरी निगाहों की ताबीर है,
देखूं जिस और भी तू ही तू नज़र आती…
कभी निगाहों से गिराया कभी दिल से,
ए चाहने वाले इतनी मुहब्बत करी क्यूँ…
जुल्फों के साये में जीने की
ना आदत ना डालनी…
हमनें तो ये ज़िन्दगी वतन
परस्ती में ही गुज़ारनी…
तन से भी सुन्दर मन से भी सुन्दर,
सुन्दर है मृग नयिनी सी तेरी चाल…
जो भी देखे दीवाना बन जाए तेरा,
हो जाये तूँ उसके सपनों की ढाल…
तेरी दीवानी में इस हद से गुज़र जाउँगा
तेरे पापा को ससुर जी
मम्मी को सासू बुलाऊँगा…
गुज़रूंगा बन ठन तेरी गली से रोज़ रोज़
सखियों का जीजा मोहल्ले
का जवाई बन जाउँगा…
देखो यूँ भीगा न करो
एक तेरा ये खिला यौवन उस पर भीगा बदन…
पानी में आग लगाती
कम्बख्त तन्हा रातों में प्यास लबों की बढ़ाती…
ये जहाँ बेवफाओं की दुनीयाँ में आ गया,
कहने को सब अपने मगर वफादार कहाँ…
वो फूल किताबों में रखा जो दिया था तूने,
जब भी देखता याद आती अब तो आजा…
ना पिला निगाहों से इस क़द्दर साकी मुझे…
बोतल सा नशा हो बाँहों में उम्र गुज़र जाये…
ये पल भी हसीन हैं वो लम्हें भी खुशनसीब होंगे…
जब आखिर पलों में”सागर” रब्ब से रूबरू होंगे…
लुक छुप कर न देखो
के शक में पड़ जाएं..
इस क़द्दर मुहब्बत कर बैठें
के मर भी न पाएं…
कम्बख्त पागल सी मुहब्बत क़ाबिल न थी
फिर भी दिल चुरा ले गई…
बुलाया शाम चाय पर था आई चाय भी पी
मगर प्याली उठा ले गई…
नि तूँ फैसले ही फासले बडान आले कित्ते
हुन मैं दस्स होर कि कराण…
तेनुं रब्ब वर्गा मन दिल च वसाया
सवेरे शाम इक तेरी पूजा मैं कित्ती
हुन दस्स होर कि कराण…
रुक दी हवाँ च साह तेरे नाँ दी
तेनुं ही चाहया जाँ तेरे नाँ कित्ती
हुन दस्स होर कि कराण…
क्या खूब है तेरे हुस्न की अदाएगी,
बंदा तो बंदा रब्ब भी बहक जाए…
वो खुशनसीब होगा जो तेरे करीब,
तेरे नूर से वो भी मशहूर हो जाए…
तेरा तस्सवुर इक हसींन लम्हा है,
दुआ करो यारो वक़्त रुक जाए…
माना जहाँ में कई बेक़दर हैं”सागर”,
ए खुदा उनकी तासीर बदल जाये…
मंजिल अलग अलग मक़सद भी अलग तरीका भी..
मगर न भूलो “सागर” उम्मीद सब की एक सी होती…
न कर मेरे दोस्तों से मेरी शिकायत,
नाराज़ हो सकते मगर बेवफा नहीं…
कितना खुशनसीब है पानी
जब जब नहाती होगी तेरे बदन को छु कर…
होले होले उफ़्फ़ कम्बख्त
सर से उतर गले रास्ते नाभि में सिमट जाता…
मुहब्बत हो गई है तुझे,
सुना मुहब्बत करने वाले इस दूनियाँ में नहीं रहते…
ज़िंदा हैं वो लोग जो ज़िंदादिल हैं…
मुर्दों के साथ जीने की आदत नहीं…
किस किस को मिस करूं
किस मिस को हिट करूं…ज़िंदा हैं वो लोग जो ज़िंदादिल हैं…
मुर्दों के साथ जीने की आदत नहीं…
किस किस को मिस करूं
किस मिस को हिट करूं…
सभी एक सी खूबसूरत
किस मिस को फिट करूं…
बहुत खूब है तेरी ज़िंदादिली भरी बातें..
कम ही देखा है हुस्न को इतना बेबाक…
मेरी ज़िन्दगी में आते तो कुछ और बात होती L…
जो ये नसीब जगमगाते तो कुछ और बात होती…
सभी एक सी खूबसूरत
किस मिस को फिट करूं…
बहुत खूब है तेरी ज़िंदादिली भरी बातें..
कम ही देखा है हुस्न को इतना बेबाक…
मेरी ज़िन्दगी में आते तो कुछ और बात होती L…
जो ये नसीब जगमगाते तो कुछ और बात होती…
ये कैसी ज़िद्द तुझे पाने की
तेरी गली जान लुटाने की
इश्क़ समझूँ या कुछ और
पहले तो बताये ज़रा सज्ज धज्ज चांदनी रात निकली ही क्यों थी
क्या ऐसी बात दिन में पूरी न हो सकीं रात पूरी करने निकली थी
थोड़ा झोटे का दूध पिया कर
गेल ताकत भीतर लिया कर,
बड़ी मिठ्ठी रास बरी मलाई तू
छोरों की खाट खड़ी किया कर…
कोई ऐसी भी जवानी ना गुज़री
जिस ने जाम ए उल्फत ना पिया
मदहोश हो लड़खड़ाई ना कभी
तस्वीर का तस्सव्वुर ही ना किया
ओस की बून्द सी नाजुक हो
कुछ शरमाई कुछ घबराई सी…
बागबाँ खुश ऐसी कली पाके
इस दिल को भी है भाही सी…
जब चाँद छुपने को हो
हर तरफ अँधेरा छा जाये
होले चुपके छत पर आ
मेटे चाँद दीदार करा जाना
जब वो गुस्से में होती
लाल मिर्च लगती,
होंठों पे होंठ रखते ही
शक़्कर की बोरी…
Dua करियो महारे सै बापू थारा
ब्याह न कर देवे कद्दी भूल कर सै
भैंस बागी भगति फिरेगी👿
ज़रा ज़रा झुक जाता जब
पलकें झुकाती हो
कलियाँ सब खिल जाती
यूँ मुस्कुराती हो
जब से देखा जलवा ए हुस्न
दिल दीवाना हो गया…
ए शम्माँ अब इतना ना इतरा
दिल परवाना हो गया…
पहले मिली ना थी
आंखें भी लड़ी न थी…
अब बात और हज़ूर
ये इश्क़ का खुमार है…
तुझसे नाराज़ हो ज़िन्दगी मैं कभी जी न पाउँगा,
आजा न लम्हों की बात दुनियां से चला जाऊंगा…
Posted on January 30, 2022, in Shayari Khumar -e- Ishq. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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