लम्हें
देखा चाँद को पहली बार ज़मीं पर नज़र न लगे l
चंडीगढ़ की आब-ओ-हवा में और निखर आया है ll
छुप छुप कर न देखा करो के
शक में पड़ जाएँ l
इस क़द्दर भी न चाहो न मिले तो
मर ही न पाएं ll
ज़िन्दगी के ये कारवां यूँही चलते रहेंगे,
लोग आएंगे जाएंगे मस्ले होते रहेंगे l
तुझको चुननी जो राह चुन ले वो “रवि”,
ये दौर ज़िन्दगी के यूँही गुज़रते रहेंगे ll
हया का ऐसा सरूर था
इक़रार था मगर ज़माने का खौफ भी l
यारो इश्क़ छुपाये न छिपे
सामने आते ही झुकी नज़रें बयाँ कर गई ll
तेरी चूडियाँ और माथे की बिंदिया
मेरे दिल का चैन चुराती हैं l
फिर कहती तुम न इश्क़ करो भला
सामने क्यूँ सजधज आती है ll
तेरी सांसों से ये महकती हवाएं
मेरी सांसें भी महका जाती l
अहसास दिलाती करीब है मेरे
दिल का क़रार और बढ़ाती ll
झूठी थी वो और झूठी उन की मुहब्बत l
ज़रा सी आँख हटी गैर बाँहों में समा बैठे ll
हया का ऐसा सरूर था
इक़रार था मगर ज़माने का खौफ भी l
यारो इश्क़ छुपाये न छिपे
सामने आते ही झुकी नज़रें बयाँ कर गई ll
खवाबों से लबरेज़ हैं शराबी आँखें,
जान से प्यारी हमें तुम्हारी आंखें…
जिसके लिए जीते थे वही साथ छोड़ रही l
लगता जैसे सांसें जिस्म से साथ छोड़ रही ll
Wada hai tujhse,
Zindagi tujh sang hi guzrni l
Na mili to kasm,
Ab duniya hi fir chhod drni ll
आशा की किरणों सांग नई सुबह आई है.!
सतरंगी सपनें पूरे होंगे उम्मीद ले आई है…!!
ज़िन्दगी तो इससे बेहतर भी हो सकती थी मगर !
उन्हें तो याद है बस लड़ना इससे फुर्सत ही कहाँ !!
एक ज़माना था उनसे रूबरू हुआ करते थे,
जिन्हें मुहब्बत में वफ़ा रखने की चाहत थी…
ये है मुहब्बत आजकल
जब चाहो किसी से प्यार करो जब चाहो दूजे से l
ऐसो को क्या करें यारों
चलो सबक सिखाते उनके कॉलेज जा मशहूर करते ll
न कर मतलबीपन की बातें
ये साथ सात जन्मों का
अब न छूटेगा दुनियां के रहते
ये रिश्ता है मुहब्बत का
तेरी गली को भूलना गंवारा न था
तेरे बिन जीना कभी भाया तो न था l
तू करती रही शिक़वा कदम कदम
तेरे ख्यालों में भी तो कोई और न है ll
मुझे शौक़ नही है बेवफाई का
जैसे भी हो निभाता मैंने l
तू इलज़ाम लगाती रही फिर भी
दिल खोल सताया तूने ll
न कर मेरे काफिले पर वार तू
क़तरा क़तरा कर संजोया है मैंने l
बंद कर आँखें ज़रा सोचना तू
नफरती अँधियों से तूने क्या पाया ll
ना करो मालिक से शिक़वा शिकायत…
जैसे भी हो औरों से बहुत खूब हो यारा.!!!
ज़िन्दगी एक सफर है हम हैं राही…
जाने किस गली शाम हो जानी है !!
आइना जब तब देखूं
तेरी तस्वीर नज़र आये…
बेवफा मैं हूँ या फिर तू
आइना देख के तो बता.!!
रुखसत तो होना ही एक दिन सनम…
क्यों न तेरी गली गुज़रे आखिर कारवां.!
वाक़िफ़ हूँ हुस्न ए शबाब से…
मगर डर लगता है तेरे बाप से.!
लगता है तुझे मर्ज़ ए इश्क़ हो गया बच्चा…
मेहबूब गली जा करा इलाज़ अपना सच्चा.!!
माँ बाप क़दमों तले ज़न्नत…
मांग वहां पर जाकर मन्नत.!!
जिसने न पाया माँ बाप का यक़ीन…
उसने न पाया दुनियां का भी यक़ीन.!!
ज़िन्दगी दो चार लफ़्ज़ों की दास्ताँ नहीं
पढ़ो और बुला दो…
ज़िन्दगी वो अफसाना जिसे सदियों तक
भुला न जा सके.!!
ज़िन्दगी और भी बेहतर हो सकती थी…
हर गर्दिश ए हवाओं ने साथ दिया होता.!!
वाक़िफ़ हैं हम भी गर्दिश ए हालात से…
फिर भी माँगा तुझे खुदा से फरियाद में.!!
जो रुस्वा करते हैं.मुहब्बत को वो आशिक़ी न करते…
मुहब्बत तो इबादत रब्ब की जो करते फन्हा हो जाते.!!
दिल की लगी में जो मुहब्बत दागदार करे…
वो आशिक़ नहीं आशिक़ी बदनाम है करे.!!
कौन कहता है के तुम जहाँ में तनहा हो…
गौर से देखो ज़मीं आसमाँ सब साथ हैं.!!
ज़िन्दगी के चार दिन यारा
हंस कर या तो कर जी ले…
मगर न खामोश गुज़ार इसे
जैसे हो ज़िन्दगी गुज़ार ले.!!
इतना रुक रुक धीरे धीरे जो बढ़ोगे…
प्यार तुम क्या ख़ाक किसी से करोगे.!!
न सहारे की परपरवाह खौफ जुदाई का…
निकल उस डगर जो मंज़िल खुद निकाले.!!
कर खुद पर और अपनी तक़दीर पर…
खुदा मायूस न करता अपने करीब को.!!
तुझसे गुफ्तगू की चाहत फिर तेरे करीब लाई !
बहुत चाहा भुलाना नगर चाहकर भुला न पाए.!!
Posted on January 17, 2022, in Shayari Khumar -e- Ishq. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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