न जानेगा ‘सागर’ औरत की बंदिश-ए-दास्ताँ.!!
मेरी वफाओं को तूने बेवफाई का नाम दिया,
काश मेरी जगह होता समझता मजबूरियों को.!
न जानेगा ‘सागर‘ औरत की बंदिश-ए-दास्ताँ,
कैसे सहना होता रिवाज़ों की पहरेदारियों को.!!
Posted on June 14, 2019, in Thought of the Day. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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