“लम्हें”
1) यक़ीन नहीं फिर भी यक़ीन करना होगा”सागर“./
बेवफा बेशक है मगर जान-ए-जिग्गर भी तो है.//
2) ये तेरी गलतफहमी है “सागर” अजनबी को दिल दे बैठी./
ज़रा दिल में झांक कर तो देखती सांसों से प्यार कर बैठी.//
3) गर छुपाना सीख जाते”सागर”इजहार-ए-उल्फत कैसे करते./
दिल में जलती शम्माँ तेज हवाओं में फिर कैसे रोशन रखते.//
4) तुझे हक़ है “सागर” वफाओं पर शक करने का./
गर दिल में हो मुहब्बत रश्क़ करना भी लाज़िम //
5) इसी का नाम ज़िन्दगी है यारो.!
जैसे भी हो बस गुज़र ही जाती.!!
6) बड़े जिग्गर वाले होते उल्फत के मतवाले.!
जान देते इश्क़ खातिर मगर उफ़ न करते.!!
7) हर ख्वाहिश गर मुकम्मिल होती “सागर“.!
फिर हसरतों का जिक्क्र ज़माने में न होता.!!
8) इसी का नाम मुहब्बत है यारा./
तभी हर शय में रब्ब दीखता है.//
9) न पूछ मुझसे मेरे होंसलों की परवाज़./
गर सामने हो तेरे होंठ चूम लूँ मैं.//
Posted on June 5, 2019, in लम्हें. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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