तुझे मुहब्बत ना थी मेरे अरमानों से.!!
तुझे मुहब्बत ना थी मेरे अरमानों से,
वरना मेहंदी यूँ और नाम लगाती ना.!
करती इंतज़ार मेरा क़यामत की हद,
डोली में बैठ गैर संग सेज़ सजाते ना.!!
Posted on May 8, 2019, in Shayari-e-Dard. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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