उल्फत से मुंह न…!!
इस दौड़ भरी ज़िन्दगी में कुछ फुरसत के पल निकाल एक ग़ज़ल लिखी है,
अपने दिल के ज़ज़्बात लफ़्ज़ों में पिरोने की कोशिश है,जो आप सबके
समक्ष प्रस्तुत है:-
उल्फत से मुंह न फेरिये वफ़ा न मिलेगी बार-बार.!
कहानी है ये चार दिन की रुत न आएगी बार-बार.!!
उल्फत से मुंह न…जी भर के देख लीजिये अब न मिलेंगे तुम्हें हम.!
बेशक रहोगे रूह में सांसों के होंगे तुम्ही सनम .!!
उल्फत से मुंह न…शिकवों का क्या मान लीजिये है दिल का भरम.!
हम न होंगे तबतो न होंगे तुम्हारी ज़िन्दगी में गम.!!
उल्फत से मुंह न…दिल की सुना भी दीजिये क्यों हम से इतनी शर्म.!
इंकार कर देंगे क्यों है तुमको इस बात का वहम.!!
उल्फत से मुंह न…मनचाहा जहाँ नसीब हो हैं सब के अपने करम.!
आँखों में सवाल क्यों क्यूँ इक-दूजे के लिए रहम .!!
उल्फत से मुंह न…
Posted on April 24, 2019, in Ghazals Zone. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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