ज़िन्दगी लम्हों की खता है…!!
ज़िन्दगी साथ गुज़ारे लम्हों की खता है,
क्या मुहब्बत इतनी बड़ी गुनाह है…
क्यों दिन-रात तड़पते किन्हीं ख्यालों में,
क्या मुहब्बत करने की ये सज़ा है…
हर किसी को न मिली मनचाही दुनियां,
क्या मुहब्बत खुद भी बेवफा है…
क्यूँ किसी ओर का तस्सव्वुर करे दिल,
क्या मुहब्बत में पाना ही वफ़ा है…
दीये उल्फत के जलाये बैठे हैं “सागर“,
क्या मुहब्बत का यही नशा है…
Posted on April 14, 2019, in Ghazals Zone. Bookmark the permalink. 2 Comments.
क्यूँ किसी ओर का तस्सव्वुर करे दिल,
क्या मुहब्बत में पाना ही वफ़ा है…
👌👌
क्या खूब कहा है! बिल्कुल सही।
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जो दिल में आया लिख दिया,आपको अच्छा लगा,
जान ख़ुशी हुई, धन्यवाद सोहनप्रीत जी
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