भूली-बिसरी यादें…-Sagar
कई साल पहले स्कूल लाइफ (आठ वर्ष की आयु ) में एक कविता लिखी थी “उम्मीद“।
जिसका सिर्फ मुखड़ा यहाँ पेश है।
अर्ज़ है:-
बढ़-चढ़ कर किसी से उम्मीद न रखो..
न हो पूरी तो दर्द बहुत होता है…
आज कई साल बाद बरबस ही किसी ने इसकी याद करवा दी…
Posted on March 25, 2019, in Shayari Khumar -e- Ishq. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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