Tars Aata Hai Un Pr…
हो सकता है उनके पास अपने तर्क होंगे,
पर हमें मंजूर नहीं.!कोई बीच में आये हमारे दरमियान हमे,
ये सब मंजूर नहीं.!!
शक कहें या कुछ भी वो उनकी समझ,
इश्क़ का दस्तूर यही.!मुहब्बत में इतना हक़ तो बनता यारों का,
या कहो क़बूल नहीं.!!
क्या माशूक़ से दिल की कहना गुनाह है,
ये इश्क़-ए-असूल नहीं.!ज़िद्द काम की हो तो अच्छी लगती नहीं,
सोचो ये फ़िज़ूल नहीं.!!
तुम्हारी तुम जानो हमें तो इश्क़ है तुमसे,
भँवरे से हम नहीं.!वक़्त रहते संभल जाओ हमें इश्क़ है पर,
इतने भी मजबूर नहीं.!!
Posted on March 7, 2019, in Ghazals Zone. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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