टहलते-टहलते ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
कुछ मासूम से कुछ भयानक,
फ़लसफ़ों से आँखें चार हो गयी…
कहीं सिहर रही थी,
कहीं ठिकाना ढूंढ़ती,
शून्य निगाहों से,
भीड़ भरी बस्ती में,
अपना तलाश रही थी,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
आँखों में सपने,
जीने की आरज़ू भी,
सूखे होंठों पर,
बेबसी की छाया थी,
भूखी पत्थराइ पेट में,
पानी की मधुशाला थी,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
बहुत पाया फिर भी,
और की चाहा है,
नसीबों वाले हैं,
जिनके सर छाया है,
पेट भरा है”सागर“,
मगर मन में मोह-माया है,
रात सड़क पर टहलते-टहलते,
ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो गयी…
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Posted on January 17, 2018, in Nagama-e-Dil Shayari. Bookmark the permalink. 9 Comments.
Bahut barhiya👏
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Shukriya Shivangi Sis G.
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😀
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👌👌atisundar
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Dhanyawad Pragyaji.
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वाह बहुत खूब लिखा है
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धन्यवाद रानी जी
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Behtreen👍👍
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Shukriya Thakur ji.
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