शायद प्यार करने लगा हूँ.!!
तेरी बातों में उलझने लगा हूँ.!
शायद तुझे प्यार करने लगा हूँ.!!
साथ हो करीब नहीं फिर भी.!
क्यों आस-पास समझने लगा हूँ.!!
रब्ब को माना है हर दम मैंने.!
अब क्यों तेरा नाम लेने लगा हूँ.!!
शौक़ पीने का कभी ना रहा.!
तेरी आँखों से अब पीने लगा हूँ.!!
गैर है अपनी नहीं वो मगर.!
फिर भी सेज सजाने लगा हूँ.!!
Posted on January 2, 2018, in Ghazals Zone. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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