दस-दस बार मांगों अब माफ़ी…
शायद वो पाक मुहब्बत को,
कमजोरी मान बैठे.!
एक बार फिर से अपने पैरों,
कुल्हाड़ी मार बैठे.!!
अब की जो रूठे यूँ न मानेंगे,
ख्वामखा मौका दे बैठे.!
दस-दस बार मांगों अब माफ़ी,
क्यों तक़रार कर बैठे.!!
दिल का दर्द होता है बराबर,
तुम दर्द-ए-दिल ले बैठे.!
अपनी मन की बस करते हो,
यारों को भुला हो बैठे.!!
दीये कई सन्देश मगरूर रहे,
दिल”सागर“तोड़ बैठे.!
अब पछताए क्या होत जो खेत,
चिडया चुगाये बैठे.!!
Posted on January 1, 2018, in Nagama-e-Dil Shayari. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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