मैं ईंट हूँ…!!
इस बार ही नहीं सौ बार ही नहीं हर बार सही,
इस मिटटी में ही जन्म लूँ.!
यही मेरे माँ-बाप बहन-भाई गुरु-यार-दोस्त रहे,
यहीं इसी मुल्क में पैदा हूँ.!!
अर्ज़ है:-
मुझे धर्म के चश्में सा ना देखो,
ना मैं हिन्दू ना सिख,
ना ईसाई ना मुस्लिम,
गूँधा मुझे सब ने मिल-जुल,
जाने किस खेत की हूँ,
पर मिटटी मैं तेरे देश की…
मैं जिस घर लगी उसकी हुई,
मंदिर में लगी हिन्दू कही,
मस्जिद गयी मुसलमान बनी
ढ़ोया मुझे किस-किस ने,
किस पसीने ने सींचा,
पर ईंट हूँ तेरे देश की…
मेरी छांव में बैठ बचपन गुज़रा,
आशियाँ बनाया मैंने,
हर जाति-धर्म को जोड़ा,
हर रिश्ता निभाया मैंने,
सब भूल रहे मुझ को,
पर हूँ मैं भी तेरे देश की…
तू भी गर जिद्दी है तो,
मैं भी जिद्दी कम नहीं,
मुझे जो बांटेगा उसकी,
सारी चूल्हें हिला दूंगी,
जैसी भी हूँ”सागर” मैं,
पर शान हूँ तेरे देश की…
Posted on December 15, 2017, in Shayari-e-Watan. Bookmark the permalink. 5 Comments.
Well articulated
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गूँधा मुझे सब ने मिल-जुल,
जाने किस खेत की हूँ,
पर मिटटी मैं तेरे देश की…
waah….waah…..shandar kavita aapke kalam se nikalti huyee….umda.
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Shukriya Deepti ji.
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Shukriya Madhusudan ji.
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Always welcome
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