तुझे हक़ है बगावत करने का…(Nazam)
तेरे घर से मेरे घर का महज़ फासला इतना.!
तेरे शहर सूरज निकल रहा यहाँ डूब चुका.!!
तुझे हक़ है मुझसे बगावत करने का,
मैंने कदम-कदम मुहब्बत को रुस्वा जो किया.!
तेरे दर पर आया अक्सर तेरे शहर में,
तेरी गली आ खुदको खुदसे बेशहारा जो किया.!!
तुझे हक़ है मुझसे बगावत करने का…प्यार में कुछ तो सजा पानी होगी,
जहाँ जख्म न मिले वहां दिल्लगी मुकम्मिल नहीं.!
रोज़ करते वादा साथ निभाने का,
क़र्ज़ तो अब उतारना होगा मुहब्बत का जो लिया.!!
तुझे हक़ है मुझसे बगावत करने का…तेरी दुनियां से बेहतर और नहीं.
तेरे बगैर गर जीना है तो जहाँ किस काम का मेरे.!
तुझ संग सारे खवाब हकीकत,
तेरे साथ जीने-मरने का वादा खुदा से है जो किया.!!
तुझे हक़ है मुझसे बगावत करने का…
Posted on October 20, 2017, in Nagama-e-Dil Shayari. Bookmark the permalink. 7 Comments.
Bahot badiya
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Deepti ji bahut-bahut shukriya.
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हमेशा की तरह ख़ूबसूरत
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Thanks a lot Ma’am.
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👍👍🙂
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You written it very well everyone can feel your emotions through this poem.
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Thanks a lot ma’am.I’m glad you like it.
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